मुजफ्फरपुर। कहते हैं, सच्ची रचनात्मकता वहीं जन्म लेती है, जहां लोग सिर्फ समस्या देखते हैं। जिले की विनीता ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। अपनी मां की बीमारी के दौरान जब वह अस्पताल आती-जाती थीं, तो उनकी नज़र हमेशा बाहर फेंके गए चाय के कुल्हड़ों पर पड़ती। लोग चाय पीकर उन्हें सड़क पर फेंक देते थे। यह नज़ारा देखकर विनीता के मन में एक अलग ही विचार आया।
विनीता ने उन बेकार पड़े कुल्हड़ों को इकट्ठा करना शुरू किया और उन्हें डिज़ाइनर दीयों में बदल डाला। धीरे-धीरे उनका यह अनोखा प्रयोग इतना लोकप्रिय हो गया कि आज उनकी पहचान राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच चुकी है।
विनीता बताती हैं कि शुरुआत में उन्होंने केवल साधारण रंगों और नमक का इस्तेमाल करके कुल्हड़ों को सजाना शुरू किया था। लेकिन समय के साथ उन्होंने इसमें अलग-अलग डिज़ाइन और क्रिएटिविटी जोड़ दी। आज उनके पास आकर्षक डिज़ाइनर दीयों का एक पूरा कलेक्शन है, जिसे लोग दिवाली पर खरीदना पसंद कर रहे हैं।
इस पहल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बेकार समझे जाने वाले कुल्हड़ अब खूबसूरत कला का रूप ले रहे हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित हो रहा है, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार की भी संभावना बन रही है।
विनीता का सपना है कि इस कला को वह और बड़े स्तर पर ले जाएँ और अधिक से अधिक महिलाओं को इससे जोड़ें। उनका कहना है कि – “अगर हम चाहें तो बेकार समझी जाने वाली चीजों को भी खूबसूरत और उपयोगी बना सकते हैं।”
मुजफ्फरपुर की यह बेटी आज न सिर्फ अपने जिले का नाम रोशन कर रही है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन गई है। इस दिवाली उनके बनाए दीये न सिर्फ घर-आँगन को रोशन करेंगे, बल्कि बदलाव की एक नई किरण भी जलाएंगे।
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