Birthday Celebration : कवि संजय पंकज के जन्मदिन पर हुआ "प्रणव पर्व" का आयोजन

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सुख शांति भवन में कवि, वक्ता, और साहित्यकार डॉ. संजय पंकज के जन्मदिन के अवसर पर "प्रणव पर्व" का भव्य आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन मिशन भारती रिसर्च इनफॉरमेशन सेंटर, बिहार गुरु, नव संचेतन, संस्कृति संगम सहित कई संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

डॉ. संजय पंकज की साहित्यिक विरासत पर चर्चा

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बिहार विश्वविद्यालय की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. पूनम सिन्हा ने कहा कि डॉ. संजय पंकज की रचनाओं में परंपरा और समकालीनता का अनूठा संगम है। उनकी कविताएं जहां समय के गंभीर सवाल उठाती हैं, वहीं उनमें संस्कृति की सुगंध भी स्पष्ट झलकती है।

साहित्यिक समारोह के दौरान जब डॉ. संजय पंकज ने केक काटा, तो तालियों की गूंज से पूरा सभागार गूंज उठा। इस दौरान कवियत्री डॉ. इंदुबाला शर्मा और अन्य ने सामूहिक स्वर में जन्मदिन गीत गाकर माहौल को उत्सवमय बना दिया।


प्रमुख अतिथियों के विचार

बिहार सरकार के पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा ने कहा कि डॉ. संजय पंकज न केवल साहित्य जगत के वरद पुत्र हैं, बल्कि उनके विचार समाज को चिंतन के लिए प्रेरित करते हैं। वहीं, उपमेयर डॉ. मोनालिसा ने कहा कि सरस्वती की कृपा से संजय पंकज का साहित्यिक योगदान अतुलनीय है।

डॉ. सुनीति मिश्रा ने कहा, "संजय पंकज की कविताएं जीवन के सही अर्थों को उजागर करती हैं। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं।"


कविता और कला की अनूठी प्रस्तुतियां

कार्यक्रम में प्रसिद्ध चित्रकार मुकेश सोना ने संजय पंकज का पेंसिल स्केच भेंट किया। संगीत प्रस्तुति के दौरान सोनी सुमन ने संजय पंकज के प्रसिद्ध गीत "अरे यहां तो सब बंजारे" की सुमधुर प्रस्तुति दी।

इस अवसर पर डॉ. एन. के. मिश्रा की काव्य पुस्तक "इस वतन को नमन" का लोकार्पण भी किया गया।


डॉ. संजय पंकज का आभार व्यक्त

अपने संबोधन में डॉ. संजय पंकज ने कहा, "यह सम्मान मेरे लिए नहीं, बल्कि उन सभी मूल्यों और संस्कारों के लिए है, जिनके लिए हम सभी प्रतिबद्ध हैं। आप सभी के स्नेह और सहयोग के लिए मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।"


उपस्थित गणमान्य

कार्यक्रम में डॉ. अविनाश तिरंगा, प्रो. अरुण कुमार सिंह, डॉ. माया शंकर, रामप्रवेश सिंह, रमेश रत्नाकर, और कई अन्य साहित्यकार, कलाकार, व विद्वान शामिल हुए।

"प्रणव पर्व" ने साहित्य और संस्कृति को एक साथ लाकर मुजफ्फरपुर की गौरवशाली साहित्यिक परंपरा को और समृद्ध किया।


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